27 अक्टूबर को शीतकाल के लिए बन्द होंगे केदारनाथ के कपाट..
उत्तराखंड: 11 वें ज्योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ के कपाट बन्द होने की तिथि विजयदशमी पर्व पर शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पंचाग गणना के अनुसार घोषित कर दी गयी है। इस बार भगवान केदारनाथ के कपाट आगामी 27 अक्टूबर को भैयादूज पर्व पर तुला लगन में प्रातः आठ बजे शीतकाल के लिए बन्द कर दिये जायेंगे। कपाट बन्द होने के बाद भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली धाम से रवाना होगी तथा प्रथम रात्रि प्रवास के लिए रामपुर पहंुचेगी और 29 अक्टूबर को शीतकालीन गद्दींस्थल आंेकारेश्वर मंदिर में विराजमान होगी।
वहीं दूसरी ओर द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर के कपाट बन्द होने की तिथि भी विजयदशमी पर्व पर शीतकालीन गद्दी स्थल आंेेकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पंचाग गणना के अनुसार घोषित कर दी गयी है। इस बार मदमहेश्वर धाम के कपाट आगामी 18 नवम्बर को प्राप्त आठ बजे वृश्चिक लगन में शीतकाल के लिए बन्द किये जायेंगे। भगवान मदमहेश्वर के कपाट बन्द होने के बाद भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली धाम से रवाना होगी तथा प्रथम रात्रि प्रवास के लिए गौण्डार गांव पहुंचेगी तथा 21 नवम्बर को शीतकालीन गद्दी स्थल आंेकारेश्वर मन्दिर में विराजमान होगी।
पंच केदारो में तृतीय केदार के नाम से विख्यात भगवान तुंगनाथ के कपाट बन्द होने की तिथि विजयदशमी पर्व पर शीतकालीन गद्दी स्थल मक्कूमठ में पंचाग गणना के अनुसार घोषित कर दी गई है। इस बार भगवान तुंगनाथ के कपाट 7 नवम्बर को शुभ लगनानुसार शीतकाल के लिए बन्द कर दिये जायेंगें। कपाट बन्द होने के बाद भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली धाम से रवाना होकर प्रथम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंचेगी तथा 9 नवम्बर को शीतकालीन गद्दी स्थल मक्कूमठ में विराजमान होगी।
आंेकारेश्वर मंदिर के पुजारी बागेश लिंग ने बताया कि छः माह ग्रीष्मकाल में मनुष्य भगवान केदारनाथ, तुंगनाथ व मदमहेश्वर धाम की पूजा अर्चना करते हैं, जबकि शीतकाल में देवतागण पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसे में हर साल छः माह ग्रीष्मकाल में तीनों धामों के कपाट खोले जाते हैं और शीतकाल में बंद कर दिये जाते हैं। भगवान केदारनाथ में शंकर भगवान के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है। स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णन है कि पांडव गोत्र हत्या से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के दर्शनों के लिए केदारनाथ आए। भगवान शिव, पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे।
पीछा करते-करते जब पांडव केदारनाथ पहुंचे तो भगवान शिव भैंस का रूप धारण कर अदृश्य होने लगे। इसी समय भीम ने उनका पृष्ठ भाग पकड़ लिया। भगवान शिव प्रकट हुए और पांडव गोत्र हत्या से मुक्त हुए। पांडवों ने इस स्थान पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया, जहां भगवान शिव के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है। भगवान शंकर के पृष्ठ भाग की पूजा केदारनाथ धाम में की जाती है तो भुजाओं की पूजा तुंगनाथ तथा मध्य भाग की पूजा-अर्चना मदमहेश्वर धाम में की जाती है।