यूयू ललित अगले प्रधान न्यायाधीश होंगे..
राष्ट्रपति ने लगाई मुहर ..
देश – दुनिया : सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीशों के क्रम में जस्टिस रमण के बाद जस्टिस ललित का ही नाम आता है। सीजेआई रमण ने भी उनका नाम अपने उत्तराधिकारी के तौर पर प्रस्तावित किया था। जस्टिस ललित देश के 49वें प्रधान न्यायाधीश होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यूयू ललित देश के 49वें चीफ जस्टिस नियुक्त हुए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनकी नियुक्ति पर हस्ताक्षर किए। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते ही तत्कालीन देश के तत्कालीन सीजेआई एनवी रमण ने यूयू ललित को उत्तराधिकारी के तौर पर चुना था। उन्होंने सरकार से जस्टिस ललित को नियुक्त करने की सिफारिश की थी।
चीफ जस्टिस रमण ने 24 अप्रैल 2021 को देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना पदभार संभाला था। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े की जगह ली थी। वे 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे हैं जस्टिस ललित
न्यायमूर्ति ललित के अगला सीजेआई नियुक्त होने पर उनका कार्यकाल तीन महीने से भी कम का होगा, क्योंकि वह इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे। जस्टिस यूयू ललित सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं। तीन तलाक को असांविधानिक करार देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के भी सदस्य थे। जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने त्रावणकोर के तत्कालीन शाही परिवार को केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रबंधन करने का अधिकार दिया था। यह सबसे अमीर मंदिरों में से एक है।
जस्टिस ललित की पीठ ने ही ‘स्किन टू स्किन टच’ पर फैसला दिया था। इस फैसले में माना गया था कि किसी बच्चे के शरीर के यौन अंगों को छूना या ‘यौन इरादे’ से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कृत्य पॉक्सो अधिनियम की धारा-7 के तहत ‘यौन हमला’ ही माना जाएगा। पॉक्सो अधिनियम के तहत दो मामलों में बॉम्बे हाईकोर्ट के विवादास्पद फैसले को खारिज करते हुए जस्टिस ललित की पीठ ने कहा था कि हाईकोर्ट का यह मानना गलती था कि चूंकि कोई प्रत्यक्ष ‘स्किन टू स्किन’ संपर्क नहीं था इसलिए यौन अपराध नहीं है।
जस्टिस ललित उस पीठ में भी थे, जिसने कहा था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-13 बी (2) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए निर्धारित छह महीने की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य नहीं है। हाल ही में जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को अदालत की अवमानना के आरोप में चार महीने के कारावास और 2000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी।