Travelogue by Rauthan Rakhi
देवलसारी यात्रा वृत्तांत कैसे पहुंचे, जाने पूरी जानकारी
क्या है खास
अगर आप शहरों की रोजमर्रा जिंदगी से थक चुके हैं और कुछ समय एकांत में बिताना चाहते हैं तो दोस्तों आज अपने इस ब्लॉग में हम आपको बतायेंगे एक ऐसी खूबसूरत जगह के बारे में जहां आपको अवश्य जाना चाहिए
देवलसारी– सोशल मीडिया पर नाम तो बहुत सुना था लेकिन कभी जाना नहीं हुआ। यूंही अचानक देहरादून की गर्मी से निजात पाने के लिए 01.06.2023 की शाम देवलसारी जाने का मन बनाया और कर लिया झोला तैयार। सुबह देहरादून से 08.00 बजे पतिदेव संग पकड़ी फटफटिया और निकल पडे देवलसारी के लिए। देवलसारी उत्तराखण्ड के टिहरी जिले में स्थित है, यह देवदार के घने जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। देवलसारी देहरादून से लगभग 80 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है।
देहरादून से जाखन होते हुए हम मसूरी की तरफ निकल पडे, देहरादून से मसूरी का रास्ता किसी स्वर्ग से कम नहीं है। क्योंकि सुबह का समय था तो रास्ते में मैगी प्वाइंट भी कम ही खुले थे जो खुले थे वो खचाखच भरे पड़े थे हो भी क्यों न पूरा हरियाणा, दिल्ली यहीं जो पडा रहता है, जी हां बहुत जरूरी है उत्तराखण्ड के राजस्व में इन लोगों का बड़ा योगदान है। मसूरी रोड़ से देहरादून का अनुपम दृश्य नजर आ रहा था हालांकि बादलों के बीच स्पष्टता बहुत कम थी मगर जो थी बेहद ही खूबसूरत थी । मसूरी टोल पर हमारी फटफटिया को रोका गया तो हम लोकल बोल के निकल गये और इस तरह से हमने पूरे 50 रूपये बचा लिये।
देवलसारी जाने के लिए हमें मसूरी में प्रवेश करने की आवश्यकता नहीं है मसूरी से पहले ही एक रोड़ धनोल्टी के लिए जाती है जी हां हमें उसी पर प्रवेश करना है। इस रोड पर प्रवेश करते ही चारों ओर कोहरा नजर आ रहा था अगर आप लोग भी देवलसारी जाने का सोच रहे हैं तो कृपया इस रास्ते पर सावधानीपूर्वक चलें।
मसूरी धनोल्टी मार्ग से हम सुवाखोली पहुंचे यह यात्रा का मुख्य पड़ाव है। सुवाखोली से हम थत्यूड़ रोड पर निकल पडे। रास्ते में एक सुन्दर सी जगह रोंतू की बेली पड़ती है जिसे पनीर विलेज के नाम से भी जाना जाता है। यहां रूककर हमने भण्डारी रेस्टोरेंट में नाश्ता किया यह रेस्टोरेंट तंदूरी पराठों के लिए प्रसिद्ध है। अगर आपको यहां आने का मौका मिला तो यहां का पनीर परांठा जरूर ट्राई कीजिएगा। दो-दो पनीर परांठे खाने के बाद हमने अपने गंतव्य के लिए प्रस्थान किया रास्ते में बहुत से खूबसूरत गांव नजर आ रहे थे जिसमें एक गांव अलमस ने मुझे बहुत आकर्षित किया यह गांव खूबसूरत होने के साथ ही बहुत स्वच्छ गांव था।
अलमस से कुछ दूरी पर थत्यूड़ पड़ता है यह आकर ऐसा बिल्कुल भी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि हम किसी पहाडी जगर पर यात्रा कर रहे हैं क्योंकि यहां की गर्मी का स्तर देहरादून से अधिक महसूस हो रहा था। देवलसारी थत्यूड से लगभग 15 कि0मी0 दूर स्थित है। थत्यूड में रूककर हमने कुछ खाने पीने का सामान लिया और फिर निकल पडे हम देवलसारी। थत्यूड़ से आगे रोड़ की स्थिति खासी अच्छी नहीं है अगर आप यहां आने की सोच रहे हैं तो अपने साथ अच्छा ड्राइवर लेकर निकले खैर मेरे साथ तो हैवी ड्राइवर था तो मुझे ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा।
लगभग एक घण्टे बाद में देवलसारी पहुंच चुके थे यहां देवदार का बहुत ही घना जंगल है यह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। यहां की जैव विविधता को जानने के लिए पर्यटक, प्रकृति प्रेमी, विशेषज्ञ समय.समय पर इस पर्यटक स्थल पर पहुंचते हैं। देवलसारी में विभिन्न प्रजातियों की तितलियां पाई जाती हैं, इसलिए इसे तितलियों का संसार भी कहा जाता है। यह क्षेत्र करीब 30 किलोमीटर के दायरे में फैला है। सड़क से करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर इस पर्यटक स्थल की शुरुआत होती है। यह पहला ऐसा पर्यटन स्थल हैए जहां पर आकर पर्यटक व प्रकृति प्रेमी जैव विविधता व प्रकृति दोनों का एक साथ लुत्फ उठा सकते हैं। स्कूली छात्रों का दल भी समय.समय पर यहां पहुंचता रहता है। यहां पर गर्मियों में भी मौसम ठंडा रहता है। देवलसारी में ऐसे पौधे हैं, जो तितलियों के अनुकूल हैं। इन पौधों से तितलियां रस ग्रहण करती हैं, इसलिए यहां पर विभिन्न प्रकार की तितलियां पाई जाती हैं। एक ओर जहां तितलियां लुप्तप्राय हो रही हैं, वहीं देवलसारी में आज भी रंग-विरंगी तितलियां पर्यटकों के लिए आकर्षण व शोध का केंद्र बनी है।
पर्यटन स्थल देवलसारी में करीब दो सौ प्रजाति की तितलियां व डेढ़ सौ प्रजाति की पक्षी पाए जाते हैं। पौधों पर बैठी रंग-विरंगी तितलियां व पक्षियों का कोलाहल प्रकृति प्रेमियों व पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां पर विभिन्न प्रकार की तितलियां व पक्षी पाए जाने के कारण विशेषज्ञ व शोध छात्र यहां पहुंचते हैं। देवलसारी को पहचान दिलाने व यहां की जैवविविधता को जानने के लिए देवलसारी पर्यावरण संरक्षण एवं विकास संस्थान ने यहां पर वर्ष 2018 से तितली महोत्सव की शुरुआत की।
यहां भगवान शिव को समर्पित कोणेश्वर महादेव का मंदिर है माना जाता है की यह दुनिया का पहला ऐसा शिव मंदिर है जंहा पर शिवलिंग की पूरी परिक्रमा की जाती है यहाँ पर भक्तो के लाये हुए जल से केवल पुजारी ही जलाभिषेक करता है इस मंदिर के बनने की एक कथा प्रचलित है किवदंतियों के अनुसार यहां खेतों की रखवाली कर रहे ग्रामीण के खेत में एक साधू पहुंचा साधू ने ग्रामीण से कुटिया बनाने के लिए थोडी सी जगह मांगी लेकिन खेतों में फसल लगी होने के कारण ग्रामीण ने जगह देने से इंकार कर दिया जिस पर साधू क्रोधित होकर वहां से निकल गया। जब सुबह ग्रामीण उस जगह पर पहुंचा तो पूरे खेत देवदार के जंगलों में तब्दील हो चुके थे। ग्रामीणों को जंगल में एक शिवलिंग दिखा ग्रामीणों ने साधू को शिव का रूप मानकर यहां मंदिर बनाने का प्रयास कियाए लेकिन मंदिर नहीं बन पाया। कुछ समय बाद एक ग्रामीण ने रोज सुबह शाम अपनी गाय को शिवलिंग पर दूध देते हुए देखा। इसपर उसने कुलहाड़ी से शिवलिंग पर प्रहार किया। इस चोट से कुलहाड़ी टूट गई और उस गांव वाले के सिर में जा धंसी जिससे उसकी मृत्यु हो गई। गांव वाले समझ गए कि भोलेनाथ नाराज हो गए हैं। कुछ समय बाद एक ग्रामीण को सपने में उसी साधू के रूप में शिव भागवान ने दर्शन दिए। महादेव ने उसे देवदार के बीच एक मंदिर बनाने और डोली निकालने को कहा। तब गांव वालों ने वहां लकड़ी का एक मंदिर बनाया। इस मंदिर को कोनेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
अगर आप भी देवलसारी जाना चाहते हैं तो जाने पूरी डिटेलः.
कहां ठहरे और कैसे जाएं
देहरादून से मसूरी सुवाखोली होते हुए थत्यूड से लगभग 15 कि0मी0 आगे देवलसारी स्थित है। आप यहां पर रूकने के लिए वन विभाग के विश्राम गृह भी बुक कर सकते हैं साथ ही यहां पर होम स्टे की व्यवस्था ग्रामीणों द्वारा की गयी है।
किस मौसम में करें दीदार
देवलसारी के लिए सबसे अनुकूल मौसम अप्रैल से जून का है बरसात के समय यहां सड़कों की स्थिति अच्छी न होने के कारण यहां यात्रा करने से बचना चाहिए