क्या पदोन्नति में मिलेगा आरक्षण, जानिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय..
देशः सरकारी नौकरी में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिए जरनैल सिंह से संबंधित विवाद के मामले में जो सवाल उठे थे उस पर अपना जवाब देते हुए कहा कि प्रमोशन में रिजर्वेशन के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का डेटा तैयार करने की जिम्मेदारी राज्य की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत इसके लिए कोई मापदंड तय नहीं कर सकती है और अपने पूर्व के फैसलों के मानकों में बदलाव नहीं कर सकती है।
अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व का डाटा जुटाना राज्यों के लिए जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं। आरक्षण के लिए तय पैमाने और शर्तों को कम नहीं किए जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। उस डेटा का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना व जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए शुक्रवार को कहा कि राज्यों की ओर से डाटा समयबद्ध रूप से जुटाया जाना चाहिए। डाटा के समीक्षा की अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि एम नागराज 2006 व जरनैल सिंह 2018 मामलों के संविधान पीठ के फैसलों में बदलाव से विपरीत प्रभाव होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि आरक्षण के लिए मात्रात्मक डाटा संग्रह के लिए संवर्ग को इकाई मानना चाहिए। कोर्ट ने कहा डाटा सिर्फ उस पद के ग्रेड से संबंधित होना चाहिए, जिसके लिए पदोन्नति मांगी गई है। यदि डाटा का संग्रह पूरे सेवा से संबंधित होगा तो यह अर्थहीन हो जाएगा।
मानदंड का आकलन कोर्ट ने राज्यों पर छोड़ा
कोर्ट ने प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए मानदंड का आकलन करने का काम राज्यों पर छोड़ दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस आकलन में नागराज के फैसले का पालन करना होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ का फैसला सिद्धांतों का उल्लंघन
एम नागराज के फैसले में कोर्ट ने आरक्षण देने के लिए मात्रात्मक डाटा के संग्रहए प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता और प्रशासन की दक्षता पर समग्र प्रभाव जैसी शर्तें निर्धारित की थीं। शीर्ष अदालत ने 2019 में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ द्वारा पारित बीके पवित्रा.2 के फैसले को भी एम नागराज फैसले में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन माना है। बीके पवित्रा.2 फैसले में कोर्ट ने तब कर्नाटक के आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों को वरिष्ठता प्रदान करने के लिए 2018 के आरक्षण कानून को बरकरार रखा था।
क्या था नागराज केस
2006 में आए नागराज से संबंधित वाद में अदालत ने कहा था कि पिछड़ेपन का डेटा एकत्र किया जाएगा। ये भी कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू होगा। सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में आदेश दिया था कि राज्य एससी एसटी के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन सुनिश्चित करने को बाध्य नहीं है। हालांकि अगर कोई राज्य अपने विवेक से ऐसा कोई प्रावधान करना चाहता है तो उसे क्वांटिफिएबल डेटा जुटाना होगा ताकि पता चल सके कि समाज का कोई वर्ग पिछड़ा है और सरकारी नौकरियों में उसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
जानिए आरक्षण से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले
1992. इंदिरा साहनी केस- क्रीमी लेयर को ओबीसी आरक्षण से दूर किया और आरक्षण में 50 प्रतिशत की सीमा तय कर दी थी।
2006 . एम नागराज केस – प्रमोशन में रिजर्वेशन की सीमा को न्यायोचित ठहराने के लिए मात्रात्मक आंकड़ा जुटाने की शर्त अनिवार्य कर दी गई थी।
2018 . जरनैल सिंह केस- नागराज केस पर पुनर्विचार का आग्रह खारिज कर दिया गया था। क्रीमी लेयर के एससी,एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन का लाभ नहीं देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया था।
2019 . पवित्रा जजमेंट- सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के लिए निर्धारित शर्तों को नरम कर दिया था।