पर्यटन में उत्तराखंड को मिले तीन अवॉर्ड, केदारनाथ बेस्ट स्पिरिचुअल डेस्टिनेशन घोषित
देहरादून: पर्यटन के क्षेत्र में उत्तराखंड ने तीन श्रेणी में राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित अवॉर्ड हासिल किए हैं. इनमें प्रदेश ने बेस्ट वाइल्ड लाइफ डेस्टिनेशन, बेस्ट एडवेंचर डेस्टिनेशन और बेस्ट स्पिरिचुअल डेस्टिनेशन अवॉर्ड अर्जित किए. केंद्रीय पर्यटन मंत्री किशन रेड्डी ने पर्यटन मंत्री उत्तराखंड सतपाल महाराज को पुरस्कार प्रदान किए.
टूरिज्म सर्वे और अवॉर्ड कार्यक्रम में भारत के बेहतरीन पर्यटन स्थलों को 9 श्रेणियों में अलग-अलग पुरस्कार दिए गए. इनमें से उत्तराखंड को तीन अवॉर्ड हासिल हुए हैं. प्रदेश के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को बेस्ट वाइल्ड लाइफ डेस्टिनेशन, ऋषिकेश को बेस्ट एडवेंचर डेस्टिनेशन और केदरानाथ को बेस्ट स्पिरिचुअल डेस्टिनेशन घोषित किया गया है.
मुख्यअतिथि कि रूप में उपस्थित केंद्रीय पर्यटन मंत्री किशन रेड्डी ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को बढ़ावा देने के लिए बड़ी पहल की जा रही है.बता दें कि, शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में टूरिज्म सर्वे और अवॉर्ड वितरित किए गए. अवॉर्ड ग्रहण करने के बाद पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कोरोना के बाद से उत्तराखंड पर्यटन, वेलनेस टूरिज्म और आयुष के क्षेत्र में एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा है. उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य से सदियों से देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. साहसिक पर्यटन की हमारे उत्तराखंड में अपार संभावनाएं हैं. रोमांच के शौकीनों के लिए उत्तराखंड पसंदीदा जगहों में शामिल हो रहा है.इसको ध्यान में रखते हुए हम साहसिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम भी कर रहे हैं. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जो वाइल्डलाइफ लवर्स के साथ ही नेचर लवर्स के लिए भी एक परफेक्ट डेस्टिनेशन है. यहां पर्यटक रोमांच के साथ-साथ जोश और उत्साह का भी अलग अनुभव करते हैं. तीन श्रेणियों में पुरस्कार मिलने से उत्तराखंड का मान बढ़ा है. हमारी सरकार उत्तराखंड के पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देने और अपने कर्मचारियों व स्थानीय समुदायों के विकास को प्रतिबद्ध है. यह सम्मान पाकर हम सम्मानित महसूस कर रहे हैं.
पर्यटन मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा-निर्देशों के अनुसार केदारनाथ में विकास कार्य किए जा रहे हैं. जिससे भविष्य में केदारनाथ आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधाऐं प्राप्त होंगी. पर्यटन मंत्री का उद्देश्य चारों धाम की यात्रा बंद होने के बाद उनके वैकल्पिक तीर्थ स्थलों को शीतकालीन चारधाम के तौर पर प्रमोट करना रहा है.पर्यटन के क्षेत्र में उत्तराखंड ने तीन श्रेणी में राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित अवॉर्ड हासिल किए हैं. जिसमें से एक जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, जिसको बेस्ट वाइल्ड लाइफ डेस्टिनेशन का अवॉर्ड मिला है. आइए जानते है कॉर्बेट पार्क के बारे में कुछ बाते…
कॉर्बेट पार्क का इतिहासः विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क बाघों और वन्यजीवों के दीदार के लिए पूरे देश विदेश में प्रसिद्ध है. 1936 में पार्क की स्थापना के समय इस पार्क का नाम तत्कालीन गवर्नर मैल्कम हेली के नाम पर हेली नेशनल पार्क रखा गया था. वहीं, आजादी के बाद इस पार्क का नाम रामगंगा नेशनल पार्क रख दिया गया. फिर प्रसिद्ध शिकारी रहे जिम कॉर्बेट की मौत के 2 साल बाद 1956 में इसका नाम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का क्षेत्रफल 1318.54 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यहां कई प्रकार के पेड़ों की प्रजातियां, जीव जंतु व कई प्रकार के वन्यजीव भी हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व बाघों के घनत्व के लिए देश-विदेश में जाना जाता है. रामगंगा नदी पार्क की लाइफ लाइन मानी जाती है.
कॉर्बेट के नाम से चल रहा रोजगार: बता दें कि, विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क देश-विदेश में बाघों के घनत्व के साथ ही अन्य वन्यजीवों के लिए चर्चित है. एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट को इस दुनिया से गए आज करीब 66 साल हो गये हैं. आज भी उनके नाम पर रामनगर व आसपास के क्षेत्रों में कई प्रतिष्ठान, रिजॉर्ट और यहां तक की सैलून की दुकानें भी चल रही हैं. आज भी व्यवसाय करने वाले कहते हैं कि जिम कॉर्बेट पार्क रामनगर में अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं. इसलिए आज भी वे जिंदा हैं.
नैनीताल में जन्मे थे जिम कॉर्बेट: एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ था. नैनीताल में जन्म होने के कारण कॉर्बेट को नैनीताल और उसके आसपास के क्षेत्रों से बेहद लगाव था. जिम कॉर्बेट ने अपने प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में पूरी की. अपनी युवावस्था में पश्चिम बंगाल में रेलवे में नौकरी कर ली. लेकिन नैनीताल का प्रेम उन्हें नैनीताल की हसीन वादियों की ओर खींचता रहा.
कालाढूंगी में बनाया था घर: जिम कॉर्बेट ने साल 1915 में स्थानीय व्यक्ति से कालाढूंगी क्षेत्र के छोटी हल्द्वानी में जमीन खरीदी. वे यहां रहने लगे. उन्होंने यहां घर भी बना लिया था. नैनीताल के समय में यहां रहने आया करते थे. उन्होंने अपने सहयोगियों के लिए अपनी 221 एकड़ जमीन को खेती और रहने के लिए दे दिया. जिसे आज कॉर्बेट का गांव छोटी हल्द्वानी के नाम से जाना जाता है.1947 में विदेश चले गए थे: बता दें कि, आज भी देश-विदेश से सैलानी कॉर्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी घूमने के लिए आते हैं. साल 1947 में जिम कॉर्बेट देश छोड़कर विदेश चले गए. जाते समय कालाढूंगी में स्थित घर को अपने मित्र चिरंजीलाल साहब को दे गए.ब्रांड बन चुका है कॉर्बेट का नाम: वर्तमान में कॉर्बेट का नाम एक ब्रांड बन चुका है. एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट के नाम से रखे गए पार्क से जोड़कर सैकड़ों लोग पर्यटन से अपने व अपने परिवार की आजीविका चला रहे हैं. इसमें ऐसे भी लोग हैं जो कॉर्बेट के नाम के सहारे अपनी दुकान चला रहे हैं. कॉर्बेट का नाम इतना प्रसिद्ध हो चला है कि कई लोगों ने अपने छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों के नाम कॉर्बेट के नाम से ही रखे हैं. यहां तक पर्यटकों की बुकिंग करने वाले प्राइवेट लोगों ने भी अपनी साइटों के नाम कॉर्बेट के नाम पर रखे हैं.सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक स्थान (Best Spiritual Destination) की बात करें तो इसमें केदारनाथ धाम टॉप पर है
केदारनाथ धाम का इतिहास: बात दें कि, केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. केदारनाथ धाम असंख्य भक्तों की आस्था का प्रतीक माना जाता है. पुराणों के अनुसार भगवान शिव धरती के कल्याण हेतु 12 स्थानों पर प्रकट हुए थे. इन्हें ही 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ भी है. साथ ही यह उत्तराखंड के पवित्र 4 धामों में से एक है. हर साल भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए इस पवित्र स्थल की यात्रा के लिए जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा इस मंदिर और यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्तों पर बनी रहती है. मान्यता है कि ये पवित्र मंदिर महाभारत के पांडवों द्वारा बनाया गया था. बाद में 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इसका पुनः निर्माण करवाया गया.पौराणिक मान्यता है कि बाबा केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद छह माह नर और छह महीने देवता पूजा करते हैं.मान्यता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने किया था. जिसे पांडवों के समय में निर्मित बताया जाता है. हर साल मंदिर के कपाट खुलते ही भारी संख्या में श्रद्धालु बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.पौराणिक मान्यता है कि कपाट बंद रहने के दौरान मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी सभी देवताओं के कंधों पर आ जाती है. जब केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होते हैं तब उस समय एक अखंड ज्योति जलाकर रख दी जाती है. ऐसी मान्यता है कि 6 महीने के बाद दोबारा मंदिर के दरवाजे खुलने पर अखंड ज्योति जलती रहती है, जो भक्तों की आस्था को और प्रगाढ़ करता है.
पौराणिक कथा: मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान भोलेनाथ पांडवों से काफी नाराज थे. जिसकी वजह से वे पांडवों को अपने दर्शन नहीं देना चाहते थे. लेकिन पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पर पहुंचे. भगवान शंकर अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे. वहीं पांडव भी भगवान शिव का पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए.भगवान शंकर ने तब भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले. इस पर पांडवों को संदेह हुआ. जिसके बाद भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए. इस दौरान सभी भैंसे उनके पैरों से निकल गए, लेकिन भगवान शंकर रूपी भैंसा उनके पैर के नीचे से नहीं निकला. फिर भीम पूरी ताकत से भैंस पर झपटे, लेकिन भीम के झपटते ही भगवान शिव भूमि में अंर्तध्यान होने लगे. तब भीम ने भैंसे की पीठ का भाग पकड़ लिया. भगवान शिव पांडवों की भक्ति, दृढ़ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए और उन्हें तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया.