ठगी का नया तरीका वॉयस क्लोनिंग कहीं आप तो नहीं हो रहे इसका शिकार.
क्या है वॉयस क्लोनिंग
वॉयस क्लोनिंग फ्रॉड एक डिजिटल धोखाधड़ी की एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है साइबर अपराधी सबसे पहले शिकार चुनते हैं, फिर उसके नाते रिश्तेदार या दोस्त की पहचान की जाती है, AI टूल्स की मदद से उसकी वॉयस क्लोनिंग करते हैं और फिर परिचित की आवाज में फोन करके ये बताते हैं कि उनका एक्सीडेंट हो गया, पर्स चोरी हो गया, या वो किसी बड़ी मुसीबत में हैं, इसीलिए उन्हें कुछ मदद चाहिए. कई बार तो ये अपराधी पीड़ित का बेटा-बेटी, पति या पत्नी बनकर कार्ड की डिटेल भी पूछ लेते हैं।
उत्तराखंड- उत्तराखंड पुलिस लोगों को जागरूक करने के लिए और इस फ्रॉड से बचाने के लिए काम कर रही है. क्या होता है वॉइस क्लोनिंग फ्रॉड और देहरादून में किस तरह लोग हो रहे इन मामलों के शिकार, देखिये हमारी यह रिपोर्ट…
अगर आपके पास आपके किसी संबंधी, दोस्त या किसी जानकार का अचानक फोन आता है और वह कहता है कि वह मुश्किल में है, उसे पैसे की जरूरत है तो सावधान हो जाइए क्योंकि वह आपका सगा सम्बन्धी नहीं बल्कि साइबर ठग हो सकते हैं जो आजकल AI की मदद से आपके दोस्त, रिश्तेदार की आवाज बदलकर फोन कर ठगी को अंजाम दे रहे हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को किसी भी आवाज की नकल करने के लिए सिर्फ 3 सेकेंड का वीडियो चाहिए होता है, ये स्कैमर लोगों के फेसबुक, इंस्टाग्राम या यूट्यूब की मदद से वॉयस सैंपलिंग कर लेते हैं, ये वॉयस क्लोनिंग टूल ऑनलाइन मिल जाते हैं, खास बात ये है कि ये पूरी तरह फ्री हैं, इनसे किसी भी आवाज की कॉपी की जा सकती है. एक सर्वे के मुताबिक तकरीबन 75 फीसदी लोग AI वॉयस क्लोनिंग और नेचुरल आवाज में अंतर नहीं पहचान पाते।
उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने जानकारी देते हुए कहा है कि उन्होंने कहा कि साइबर ठग किडनैपिंग,सड़क दुर्घटना या किसी भी मुसीबत की बात करके आपके किसी परिजन की आवाज़ में बात कर पैसे मांग सकता है. इसलिए आपको थोड़ा सावधान होकर अक्ल से काम लेना चाहिए और उन्हें कहना चाहिए कि मैं थोड़ी देर बाद बैक कॉल करता हूँ और फिर पुष्टि कीजिए कि वह व्यक्ति सही बोल रहा है या गलत. उन्होंने कहा इसके अलावा आप उस व्यक्ति से अपने परिवार या रिश्तेदार से जुड़ा कोई सवाल कर सकते हैं जिससे उस व्यक्ति का झूठ पकड़ा जाएगा. डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि साइबर ठग इतनी सफाई से आवाज को बदलते हैं कि 85% लोग इसके शिकार हो जाते हैं।
डीजीपी अशोक कुमार ने अपील करते हुए कहा है कि ऐसे साइबर ठगों के जाल में न फंसे , कोई ओटीपी, अकाउंट नंबर या qr-code किसी व्यक्ति को ना बताएं. उन्होंने कहा कि अगर आप इस तरह की ठगी का शिकार हो भी जाते हैं तो आप अपने थाने जाकर मुकदमा दर्ज करवाएं और इसी के साथ ही आप साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 में डायल करके जानकारी दे सकते हैं।
क्या करें ?
1. सोशल मीडिया के समय में डाटा की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, ऐसे में कोई भी नई ऐप डाउनलोड करते समय अपनी जानकारी देने से पहले इस बात की जांच कर लें की एप कितनी विश्वसनीय है।
2. अलग-अलग अकाउंट का अलग-अलग पासवर्ड रखें, एक-जैसे पासवर्ड बनाने से बचें।
3. यदि दोस्त या सगे संबंधी को पैसे ट्रांसफर करने हैं तो एक बार खुद फोन करके जान लें कि सच में फोन करने वाले वही थे।
4. साइबर फ्रॉड का शिकार होने की बात जैसे ही पता चले तुरंत ही हेल्पलाइन 1930 पर शिकायत करें, यह राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर है।
5. यदि फोन करने तक अपराधी के खाते में रकम ट्रांसफर नहीं हुई तो हो सकता है कि आप ठगी का शिकार होने से बच जाएं.।
6. यह जरुरी है कि आप सतर्क रहें और अपनी वॉयस डेटा को सुरक्षित रखें। किसी भी प्रकार की संदिग्ध आवाज़ के साथ आपकी व्यक्तिगत जानकारी साझा नहीं करें।