Travelogue by Rauthan Rakhi
गरतांग गली यात्रा वृतांत कैसे पहुंचे, जानें पूरी जानकारी
उत्तराखण्ड : उत्तराखण्ड से होने के बाद भी आज तक उत्तरकाशी जाने का अवसर नहीं मिला था जब इस बार गंगोत्री, यमुनोत्री दर्शन के लिए उत्तरकाशी आना हुआ तो नेलांग घाटी जाने के लिए हमने एस0डी0एम0 गंगोत्री से परमिशन ले ली थी। रात को गंगोत्री में गंगा आरती करने के बाद हम अपने रेस्ट हाउस पहुंचे और जल्दी ही सो गए क्योंकि अगली सुबह हमें नेलांग जो पहुंचना था। नेलांग घाटी जाने के लिए हम सब लोग खासा ही उत्साहित थे और हों भी क्यों नहीं उत्तराखण्ड का लद्दाख जो है ये।
अगली सुबह जल्दी जागने के बाद हम नेलांग घाटी के लिए चल दिये क्योंकि नेलांग घाटी भैरव घाटी से लगभग 25 कि0मी0 दूर है और हमारी गाड़ी में इतना ही फ्यूल था कि नेलांग ही पहुंच पाते फिर वापसी में शायद गाड़ी को धक्का लगाकर लाना पड़ता इसलिए हमने भैरव घाटी में फ्यूल डलवाना उचित समझा पर जब हमने वहां के स्थानीय लोगों से पूछा कि यहां फ्यूल की व्यवस्था कैसे होगी तो उन्होंने कहा कि इसके लिए आपको हर्षिल जाना होगा l क्योंकि यात्रा सीजन अपनी चरम सीमा पर था तो फ्यूल न मिलना बहुत बड़ी बात नहीं थी। हमारे ड्राइवर ने कहा जब तक में फ्यूल की व्यवस्था करता हूं ,तब तक आप लोग गरतांग गली घूम आओ। गरतांग गली मतलब रोमांच का सफर।
क्योंकि समय बीता जा रहा था तो हमने गरतांग गली जाना ही मुनासिब समझा। भैरव घाटी से थोड़ी दूरी पर लंका पुल के बायीं ओर गरतांग गली जाने का मार्ग स्थित है। गरतांग में प्रवेश के लिए भारतीयों को 150 रू0 व विदेशियों को 600 रू0 का टिकट खरीदना पड़ता है यहां हम अत्यधिक खुशनसीब थे कि हम विदेशी नहीं हैं, तो हम गरीबों को 150 रू0 में ही अन्दर जाने की परमिशन मिल गयी। गरतांग गली में प्रवेश करते ही हमने देखा कि ये तो बिल्कुल संकरा मार्ग है जिसे पगडंडी भी कहा जा सकता है मतलब ये मान के चलो कि हमें इन पगडंडियों से ही होकर गुजरना था, चूंकि हम तो हुए ठेठ पहाड़ी तो हमें क्या ही डर लगना था ऐसे पगडंडियों पर हम पैदा होते ही दौड़ पड़ते हैं ये कुछ ज्यादा हो गया। खैर आप लोग अंत तक बने रहिये ये वृतांत इतना भी बोरिंग नहीं होने वाला है शायद
गरतांग में प्रवेश करते ही ये एहसास हो गया था कि यह सफर काफी रोमांचक होने वाला है क्योंकि एक तो पगडंडियों से होकर गुजरना और नीचे सीधी जाड़ गंगा, अगर गलती से पैर फिसला तो फिर बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन इसलिए आप जब कभी भी गरतांग जाओ तो कृपया फोटोशूट बहुत ही सावधानी से कीजिएगा। गरतांग गली के ठीक सामने खतरनाक पहाड़ी पर एक सड़क जाती दिख रही थी, हम आपस में बात कर रहे थे ये इतनी खतरनाक रोड़ कहां निकलती होगी, हमें क्या पता था हमारा अगला सफर वहीं का होने वाला है, मेरा मतलब है नेलांग घाटी ये खतरनाक रोड़ नेलांग घाटी के लिए जा रही थी। गरतांग की शांत वादियों में जाड़ गंगा की ध्वनि सिंह जैसी गर्जना करने वाली प्रतीत हो रही थी। सामने से नेलांग घाटी का विहंगम दृश्य, बड़े-बड़े देवदारों के वृक्ष, और ये संकरा मार्ग हमारी यात्रा को और भी रोमांचक बना रहा था।
प्रकृति के नजारे देखते-देखते अन्ततः हम गरतांग गली के लकड़ी के पुल पर पहुंचे, यहां आपको बता दूं कि इस पुल से ही भारत और तिब्बत के मध्य व्यापार होता था। सन् 1962 में भारत चीन युद्व के बाद इस पुल को बंद कर दिया गया था। 2021 में इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। लकड़ी के बने इस पुल को देखते ही हमारा खुशी का ठिकाना नहीं था चूंकि लकड़ी के बने पुल पर चढ़ने के कुछ नियम भी हैं जिनमें से एक नियम यह भी है कि सीढ़ी में झुण्ड में न चलें व आपस में एक मीटर की दूरी बना कर चलें, इसे पढ़कर थोड़ा डर सा भी लगा कि अगर लकड़ी का एक भी फट्टा निकल गया तो सीधे जाड़ गंगा में ही मोक्ष प्राप्त होगा हालांकि ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं था क्योंकि नियम कानूनों को फॉलो करने के लिए मेरा नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया जा सकता है। नियमों का पालन करते करते हम लकड़ी के पुल के अन्तिम छोर पर पहुंचे जहां पर लकड़ियों से बाड़ की गयी थी ये संकेत था कि इससे आगे सिर्फ तुम्हारे पूर्वज ही जा सकते थे तुम नहीं।
थोड़ी देर पुल पर रूककर नेलांग घाटी की खूबसूरती को निहारा, सिंह जैसी गर्जना करने वाली जाड़ की ध्वनि को सुना फिर हमने भैरव घाटी को प्रस्थान किया। रास्ते में बहुत से पर्यटक गरतांग का दीदार करने जा रहे थे उन्हें देखकर लग रहा था मानो कि बहुत थक चुके है। वे हमसे पूछ रहे थे कि अभी कितनी दूर है हमने उन्हें दिलाशा दिया कि बस थोड़ी दूर मगर यकीन मानिए कि लकड़ी के पुल पर पहुँचने के बाद उनकी पूरी थकावट मिटने वाली थी।
कैसे पहुंचे गरतांग गली- उत्तरकाशी से लगभग 90 किमी0 दूरी पर स्थित है। यह सड़क से जुड़ा हुआ है तथा लंका ब्रिज के बायीं ओर स्थित है।यहां के लिए 150 रू0 का टिकट लगता है यदि आप भारतीय हैं तो अगर नहीं हो तो 600 रू0 का टिकट लगेगा। यहां जाने के लिए सबसे बेहतर मौसम मार्च से अप्रैल के मध्य रहता है।
इतिहास के पन्नों में गरतांग गली- यहां स्थित लकड़ी का पुल भारत व तिब्बत के मध्य व्यापार मार्ग था। पेशावर से आये पठानों ने इस पुल का निर्माण किया था। सन् 1962 में भारत-चीन युद्व के बाद इसे पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था। 2021 में इसे पर्यटकों के लिए खोला गया।
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